राजधानी रांची के एकमात्र सरकारी बस स्टैंड की हालत बद से बदतर हो गई है। बदहाली का आलम यह है कि यहां एक पल भी खड़ा रहना मुश्किल है। यह बस स्टैंड अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। झारखंड राज्य गठन होने के 24वें साल में भी इस बस स्टैंड की व्यवस्था में कोई भी सुधार नहीं हुआ।
बस स्टैंड पर करीब तीन दशक से काम कर रहे केसी राय बताते हैं कि बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के समय में यह बस स्टैंड काफी बेहतर हुआ करता था। लेकिन, अलग राज्य गठन होने के बाद झारखंड सरकार ने राज्य पथ परिवहन निगम का गठन नहीं किया। जिस वजह से यह बस स्टैंड परिवहन विभाग के हाथ में चल गया। जिला परिवहन विभाग ने इस ओर ध्यान नहीं दिया, और धीरे-धीरे स्टैंड की स्थिति बदहाल होती चली गई। वे बताते हैं कि इस बस स्टैंड से 150 बसों को परमिट मिली है। लेकिन कोरोना काल तक यहां से 80-90 बसें चलती थीं। लेकिन कोई भी व्यवस्था नहीं होने के कारण धीरे-धीरे यात्री ही नहीं आने लगे। अभी यहां से 35-40 बसें ही चल रही हैं।
आज भी छह अलग टिकट काउंटर बने हुए हैं :
जब इस मामले में हमने बस स्टैंड की पड़ताल किया तो पता चला कि बाकायदा यहां अभी भी 6 अलग-अलग टिकट काउंटर बने हुए हैं। जब उस जर्जर भवन के अंदर प्रवेश किया तो टिकट काउंटर के अंदर 8-10 की संख्या में टिकट कर्मी भी लगे हुए हैं। जर्जर भवन में जान को जोखिम में डालकर अपनी सेवा दे रहे कर्मियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि साहब घर परिवार जलाने के लिए मौत के साये में भी रहकर ड्यूटी करनी पड़ती है। हमें भी इस बात का अंदेशा हमेशा लगा रहता है कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए।
न टायलेट, न पानी और न होती है साफ-सफाई :
स्टैंड में बस का इंतजार कर रहे नामकुम निवासी अंकित पांडेय से जब बातचीत की, तो उन्होंने बताया कि स्टैंड में न पानी की व्यवस्था है, न वाशरूम, न टायलेट और न ही कोई साफ-सफाई होती है। वे बताते हैं कि साल 2016 में रघुवर दास की सरकार ने पानी और टायलेट की व्यवस्था करा दी थी। लेकिन बोरिंग अब खराब हो गया। पानी की टंकी लगी हुई है, लेकिन सभी नल की टोंटी गायब है। सुविधा के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है।
खंडहर में तब्दील होता जा रहा बस स्टैंड :
बस स्टैंड के अंदर प्रवेश करने पर ऐसा लगता है जैसे सालों पुरानी खंडहर में हम प्रवेश कर रहे हैं। पूरा भवन जर्जर हो चुका है, छत से पानी टपकते रहता है। छत की सारी छड़ें दिखती हैं, उन दीवारों में सैकड़ों जगह बड़ी-बड़ी दरारें हो चुकी हैं और उन दरारों में बड़े-बड़े पेड़ उग आए हैं। जो किसी भी वक्त हादसे को न्योता दे सकता है। चारों तरफ एक जंगल का दृश्य नजर आता है।
क्या कहते हैं अधिकारी :
इस संबंध में जिला परिवहन अधिकारी अखिलेश कुमार ने बताया कि सरकारी बस स्टैंड के संचालन के लिए राज्य सरकार की तरफ से देख-रेख करने के लिए कोई अतिरिक्त राशि नहीं दी जाती है। वाहन पड़ाव से जो भी शुल्क आता है, उसी से होमगार्ड जवान को मानदेय दी जाती है। सरकार की तरफ से कोई अतिरिक्त राशि नहीं आती है, जिसकी वजह से रख-रखाव कार्य बाधित है।
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