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31 सीट वाली बस में सवार हो जाते हैं 55 से अधिक यात्री, ना दिव्यांग ना महिला सीट का कुछ अता-पता

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31 सीट वाली बस में सवार हो जाते हैं 55 से अधिक यात्री, ना दिव्यांग ना महिला सीट का कुछ अता-पता

अगर आप रांची में नगर निगम की बस में सफर कर रहे हैं तो अपने समय की पोटली में भरपूर समय बांधकर रखिए। क्योंकि यहां नगर निगम की बस में सफर करने के बाद ही समय का महत्व समझ आएगा। अगर आप कचहरी चौक से बिरसा चौक तक का सफर करते हैं तो आपको 1- 1.5 घंटे तक बस में बिताना पड़ेगा। कचहरी चौक के समीप बस स्टैंड से गुरुवार की दोपहर में 2:10 बजे बस नंबर जेएच 01 सीके 5817 कचहरी-तुपुदाना बस में सवार हुआ। बस खुली और शहीद चौक, गोलम्बर, फिरायालाल तक पहुंचने में 5 बार रूकी। यहां से 2:20 बजे बस खुलने के बाद डेली मार्केट, हाई स्ट्रीट, बिग बाजार, मैक्स माॅल, ओवरब्रिज, राजेन्द्र चौक, हाईकोर्ट, डोरंडा, डोरंडा दुर्गा मंदिर, हिनू, बिरसा चौक तक पहुंचने में 15 से अधिक जगहों पर बस मनमर्जी से रूकी और यात्रियों को बस की कुंडी पकड़कर यात्रा करनी पड़ी। बस के अंदर खड़ा तक होने की जगह नहीं बची थी, यात्रियों को सांस लेना मुश्किल हो रहा था। लेकिन बस कंडक्टर बस में यात्रियों को किसी भी तरह चढ़ा देता। जब बस में सवार कुछ यात्रियों ने इसका विरोध किया तो कंडक्टर कहता है कि जिसको परेशानी हो रही है, यहीं उतर जाओ। बस हर 1-2 मिनट पर रूकती और ताज्जुब की बात ये थी कि बस बिना स्टाॅप के किसी भी जगह पर रूक जाती और वहां से यात्री को लेते हुए आगे बढ़ती। 6.5 किमी का सफर 1 घंटा 13 मिनट में बस के कंडक्टर के मनमानी के चलते कचहरी से बिरसा चौक की सफर करने में बस चालक ने 1 घंटा 13 मिनट का समय लगा दिया। बस में यात्रा के लिए महिलाओं की आरक्षित सीट पर पुरुष बैठे हुए थे जबकि महिलाएं खड़ी थीं। जब बस में सवार रांची यूनिवर्सिटी के बीएससी के छात्र अर्श कुमार से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि रांची नगर निगम की बस में ऐसी भीड़ हमेशा रहती है। लोगों को खड़ा रहना मुश्किल हो जाता है। वहीं एक छात्रा ने बताया कि कंडक्टर की गलती के कारण मर्द भीड़ का फायदा उठाकर जान-बूझकर महिलाओं से चिपकते हैं या यहां-वहां छूने की कोशिश करते हैं। लेकिन हम कुछ नहीं कर पाते। कुछ बोलो तो भीड़ का बहाना बनाकर निकल जाते हैं।

Ajay Sah

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पैसे दोगे तो आपके पैसों का इस्तेमाल उन गरीब मजदूर, बेघर और असहाय बच्चों की मदद करने के लिए करूंगा। जो गरीबी की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं, जिन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं हो पाती और भूखे सो जाते हैं, ठंड में सड़कों के किनारे बिना कपड़ों के रात जागकर काट देते हैं। उन गरीब बच्चों के लिए कुछ करना चाहता हूं। करीब जाकर देखो तो उनकी आंखों में हजारों सपने हैं लेकिन… दो अक्षर का ज्ञान उन्हें देना चाहता हूं, उनके लिए कुछ करना चाहता हूं। आभार और धन्यवाद 🌻🌼🌹

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