साल भर पहले बासुकीनाथ- दुमका रोड हाइवे एनएच 114 का निर्माण हुआ। हाइवे के निर्माण में सैंकड़ों लोगों की जमीनें चली गईं। उसी में से एक नाम है अवध बिहारी का। अवध बिहारी तैंतरीया, दुमका जिला के रहने वाले हैं। सरकारी सिस्टम की असंवेदनशीलता के कारण अवध बिहारी को अपनी जमीन का मुआवजा तो नहीं मिल सका। लेकिन, आफिस का चक्कर काटते-काटते और अपनी उपजाऊ जमीन सरकार को देकर तनाव लेकर जीते हुए वे कब हार्ट के मरीज बन गए, उन्हें भी पता नहीं चल सका। उन्हें सरकारी आफिस का चक्कर लगाने से छुट्टी मिल गई। लेकिन, मुआवजा के लिए उन्होंने सरकारी सिस्टम से लड़ाई जारी रखी और इसकी जिम्मेदारी उन्होंने अपनी बड़ी बेटी के कंधों पर दे दी।
अवध बिहारी के पांच संतान हैं, जिसमें तीन बेटा और दो बेटी हैं। लेकिन, उनकी सेवा करने वाला कोई नहीं। दो बेटे की शादी हो चुकी है, शादी होते ही दोनों बेटे अलग हो गए। छोटा बेटा करीब 18 साल का है और छोटी बेटी 5 साल की है।
अवध बिहारी के हार्ट की सर्जरी फरवरी में रिम्स हास्पिटल रांची में हुआ। लेकिन तब से उनकी स्वास्थ्य अच्छी नहीं है। उसी समय से गुंजन पिता की जिम्मेदारी को अपने कंधे पर ढोने लगी। उन्होंने बताया कि वह जनवरी से भू-अर्जन कार्यालय का चक्कर लगा रही है। लेकिन, कोई उनकी फरियाद सुनने वाला नहीं। आज जब कार्यालय आना था तो कल रात में ही दुमका-रांची इंटरसिटी एक्सप्रेस के जनरल कोच में बैठी। देखते ही देखते कब आंख लग गई पता ही नहीं चला। और जब गाड़ी धनबाद स्टेशन पहुंची तो पाया कि बैग चोरी हो गया था। बैग में उसकी पढ़ाई के सारे पेपर्स थे, दो हजार से अधिक रुपये थे और एक नोकिया का कीपैड फोन।
वह करीब 9 बजे भू- अर्जन कार्यालय पहुंचीं।करीब 7 घंटे तक भू- अर्जन कार्यालय के आफिस के बाहर कभी तो कभी आफिस के अंदर बैठी रहीं, लेकिन अधिकारी नहीं पहुंचे। दिन, महीने गुजरते गए लेकिन उन्होंने धैर्य रखा। वह कहती हैं कि अब सब्र का बांध टूट चुका है, अब और न तो इंतजार होता और न ही सरकारी अधिकारियों से मिलने अब दफ्तर का चक्कर काट सकती। सरकारी दफ्तर आने का जो ये सिलसिला आठ महीने पहले शुरू हुआ था, अब सरकारी अधिकारियों से न मिल पाने का चक्कर काट कर थक चुकी हैं।
एक तरह से कहें तो गुंजन की समाहरणालय ब्लाक-ए आना, उनकी मजबूरी बन गई है। दरअसल, अवध बिहारी के बीमार होने के बाद उनकी बेटी गुंजन ने सारे जमीन के कागजात और बैंक पासबुक एक दलाल को दे दी है। दलाल जमीन का मुआवजा दिलाने के लिए पहली बार जब मिला था तो 18 हजार रुपए की मांग कर रहा था, तो गुंजन ने देने से साफ मना कर दिया था। आफिस आने का ये सिलसिला जारी रहा और एक दिन दलाल ने उन्हें अपनी बातों में फंसा ही लिया। दलाल ने मुआवजा दिलाने के नाम पर सारे कागजात और पासबुक अपने पास ही रख लिया है और अब वह वापस लौटाने का नाम ही नहीं ले रहा है।
गुंजन गांव-घर की रहने वाली हैं। बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं हैं। मैट्रिक तक पढ़ाई कर चुकी हैं, पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर सकीं। अभी सरकारी नौकरी की तैयारी करती हैं। कुछ दिन पहले ही झारखंड में सिपाही भर्ती के लिए आवेदन लिया जा रहा था, तो उसमें आवेदन की थी। तो कम पढ़े-लिखे होने के कारण गांव-घर के लोग आसानी से दलालों के बातों में आकर उसपे भरोसा कर लेतेे हैं। और इस तरह से सिलसिला शुरू होता है कभी दलाल के पीछे भटकना तो कभी सरकारी अधिकारियों के पीछे। गुंजन के पास अब भू- अर्जन कार्यालय में दिखाने के लिए कोई भी कागजात नहीं बचा हुआ है, सारे कागजात ट्रेन में चोरी हो गए।
सरकारी सिस्टम की असंवेदनशीलता से तंग आकर वह कहती हैं- नहीं चाहिए हमें सरकार से भूमि अधिग्रहण का कोई भी मुआवजा। बस मुझे मेरे कागजात मिल जाए, बैंक का पासबुक मिल जाए। खाने के लाले पड़ गए हैं घर में। अब और सरकारी दफ्तर का चक्कर नहीं लगा सकती। और वह फूट-फूटकर रोने लगती हैं।
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