बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे गेतलसूद पंचायत के लोग

राजधानी से 30 किमी दूर खिजरी प्रखंड में गेतलसूद पंचायत है। इस पंचायत में चार गांव हैं- गेतलसूद, बुकी, रेशम और बेनादाग। गेतलसूद गांव, जिसने राजधानी को आबाद बनाया है, शहर के करीब 30 लाख लोगों को पानी इसी गांव के गेतलसूद डैम से मिलता है। यह पंचायत आज भी उपेक्षित है। आज उस पंचायत के लोग बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं।

गांव में एक गली से दूसरी गली तक जाने के लिए पक्की सड़कें तक नहीं है। लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना और अबुआ आवास योजना का लाभ मिलना तो कोसों दूर है। ट्रांसफार्मर पिछले तीन दिनों से खराब है। बिजली कभी-कभार रहती है। डेम के किनारे रह रहे लोग रात के अंधेरे में डर के साये में जीते हैं। नदी किनारे डेम होते हुए भी गांव के लोगों को नल जल योजना का लाभ नहीं मिलता है। लोगों के घर तक नल तो पहुंचा है, लेकिन वह नल सिर्फ एक शो पीस माडल बनकर रह गया है।

शो पीस माडल बनकर रह गया है ये नल

इलाज के लिए जाना पड़ता है शहर:

गांव में एक आयुष्मान आरोग्य मंदिर स्वास्थ्य केंद्र है। लेकिन उस आरोग्य मंदिर में कोई भी भगवान विराजमान नहीं रहते। स्थानीय लोग बताते हैं कि महीनों से यह बंद पड़ा है। लोगों को इलाज के लिए राजधानी दौड़ना पड़ता है। गांव में चुनिंदा झोला छाप डाक्टर भी हैं तो दिन में छोटी-मोटी बीमारी का इलाज हो पाता है। अगर गांव में छोटे बच्चों को बुखार आ जाए तो शहर भागना पड़ता है। गांव के लोग रात में भगवान भरोसे जीते हैं।

आयुष्मान आरोग्य मंदिर स्वास्थ्य केंद्र, गेतलसूद

रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं लोग:

पंचायत में रोजगार के अभाव ने विस्थापित परिवारों को शहरों की ओर पलायन करने पर मजबूर कर दिया है। यहां के लोग कृषि और अन्य छोटे व्यवसायों में कमाई की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन संसाधनों की कमी और सुविधाओं के अभाव ने पलायन को बढ़ाया है। गेतलसूद गांव के शिबनी देवी कहती हैं कि गांव के बच्चे 12-15 साल के होते ही अपने प्रदेश को छोड़कर बाहर चले जाते हैं। खेत तो डैम में चला गया, अब कुछ बचा नहीं है। हम मेहनत मजदूरी गांव के बाहर करते हैं। बच्चे और पति रोजगार के लिए दूसरे शहर में चले गए हैं।

गेतलसूद डैम

बारिश में छप्पर से पानी आता है। कितने बार मुखिया से कहा कि आवास दिलवा दीजिए। अबतक नहीं मिला।

बालेश्वर महतो, बुकी

तीन दिनों से ट्रांसफार्मर खराब है, कोई ठीक करने वाला आता ही नहीं है। रात अंधेरे में कटती है।

अनुष्का बेलानाग, गेतलसूद

डैम से पूरे राजधानी को पानी मिलता है। लेकिन गांव वाले नल के पानी के लिए तरसते हैं। सार्वजनिक चापकल घर से दूर है।

सीता देवी, गेतलसूद

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Ajay Sah

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पैसे दोगे तो आपके पैसों का इस्तेमाल उन गरीब मजदूर, बेघर और असहाय बच्चों की मदद करने के लिए करूंगा। जो गरीबी की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं, जिन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं हो पाती और भूखे सो जाते हैं, ठंड में सड़कों के किनारे बिना कपड़ों के रात जागकर काट देते हैं। उन गरीब बच्चों के लिए कुछ करना चाहता हूं। करीब जाकर देखो तो उनकी आंखों में हजारों सपने हैं लेकिन… दो अक्षर का ज्ञान उन्हें देना चाहता हूं, उनके लिए कुछ करना चाहता हूं। आभार और धन्यवाद 🌻🌼🌹

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Ajay Sah

गांव-गांव और शहर-दर-शहर की गलियों में भटकता, जज़्बातों की कहानियाँ बुनता हूँ। हर मोड़ पर नया अनुभव, दिल के कोने में छुपी भावनाओं को जीता हूँ।