एक जमाना था जब राजभवन स्थित डा. जाकिर हुसैन पार्क स्थानीय लोगों और बच्चों से गुलजार रहता था, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही ने इसे कहीं का न छोड़ा। रखरखाव के अभाव में यह पार्क आज बदहाली के दौर से गुजर रहा है। अब यहां वीरानी और सन्नाटा पसरा रहता है। यहां एक दशक पहले तक युवा और बुजुर्ग सुकून के दो पल बिताने आते थे। बच्चों से लेकर बुजुर्गों का जमघट लगा रहता था, लेकिन पार्क की बदहाली ने उसकी रौनक छीन ली है। पार्क में अब सन्नाटा पसरा रहता है। अब तो लोग यहां झांकने तक भी नहीं आते हैं।
1970 के दशक में हुआ था पार्क का निर्माण:
पार्क की देख-रेख करने वाले सिंटू यादव बताते हैं कि इस पार्क का निर्माण सत्तर के दशक में हुआ था। लेकिन 2001 में इसका जीर्णोद्धार कर 2002 में इसे लोगों के लिए खोल दिया गया। लेकिन 2013 में किसी कारणवश पार्क को बंद करना पड़ा। 8 साल बाद, 2021 में रांची नगर निगम ने स्मार्ट सिटी लिमिटेड के साथ मिलकर उसका कायाकल्प कर पार्क को दोबारा खोल दिया गया। लेकिन, नगर निगम की उदासीनता के कारण यह पार्क वीरान हो गया है।
देखरेख के अभाव में वीरान हुआ पार्क:
देख-रेख के अभाव में पार्क में जहां-तहां झाडियां उग आई हैं। जिसकी न तो कटाई-छंटाई होती हैं और न ही लगे छोटे पौधों में पानी दी जाती है। जिसकी वजह से सभी छोटे पौधे और फूल सूख चुके हैं। बच्चों के मनोरंजन के लिए बनी हम्प्टी ट्रेन पूरी तरह जंग से सड़ रहा है। सभी झूले टूट गए हैं, जर्जर और टूट चुके बेंच, खराब हुए झरने और पेड़ों की सूखी हुई टहनियां यहां -वहां जैसे-तैसे फेंक दिया गया है।
पार्क किनारे ठेला-खोमचा और फुटपाथ लगाने वाले बताते हैं कि तीन साल पहले जब पार्क का कायाकल्प हुआ था तब पार्क पूरी तरह से बदल गया था। पार्क में हमेशा लोग घूमते-फिरते रहते थे। लेकिन, समय के साथ पार्क की हालत दिनों-दिन बदहाल होती चली गई। अब यह पार्क लोगों के घूमने और मनोरंजन का कोई जगह न रहकर टायलेट करने, शराब पीने और कूड़ा-कचरा फेंकने का कचरा डंप स्थान बन गया है। जिसके कारण पूरा पार्क वीरान नजर आता है।
नहीं है कोई भी बुनियादी सुविधा:
पार्क में न पीने के लिए पानी है और न ही टायलेट में पानी आता है। टायलेट में गंदगी इतनी की अंदर प्रवेश करने से की इच्छा नहीं होती। शाम 8 बजे तक पार्क खुला रहता है लेकिन पार्क में लाइट की कोई व्यवस्था नहीं है। लाइट तो लगाई गई थी लेकिन समय के साथ लाइटें खराब हो गईं। नगर निगम ने खराब पड़ी लाइटों को ठीक करने में जाया भी रूचि नहीं दिखाया। पार्क में काम करने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि शराब पीने वालों का यह अड्डा बन गया है, जिसके कारण कोई अंदर आ तो जाता है लेकिन वैसे लोगों पर नजर पड़ते ही बाहर निकल पड़ते हैं। पार्क में यहां-वहां शराब की खाली बोतलें और गिलास के रैपर बिखरे मिलते हैं।
क्या कहते हैं लोग:
पार्क में अंदर प्रवेश के लिए लोगों से मिनिमम शुल्क लिया जाना चाहिए। पार्क में सुरक्षा, टायलेट की साफ-सफाई, पानी और बच्चों के खेल-कूद वाले संसाधनों पर नगर निगम को ध्यान देने की जरूरत है।
- प्रो. रविन्द्र शर्मा
बड़े-बुजुर्गों के लिए यह पार्क एक अच्छा जगह था, जहां हम पूरे परिवार के लिए आया करते थे। लेकिन, देख-रेख के अभाव में अब इसका कोई अस्तित्व नहीं रहा। सुविधाएं नहीं होने से लोग भी आना बंद कर दिए।
- शेखर कुमार
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