

पैसे नहीं, दुआएं दो…
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जिस तरह इंजीनियरिंग के क्षेत्र में आईआईटी, मैनेजमेंट के लिए आईआईएम और मेडिकल के क्षेत्र में एम्स देश के सर्वोत्तम संस्थान हैं, ठीक उसी तरह पत्रकारिता के क्षेत्र में आईआईएमसी (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन) को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। आईआईएमसी सिर्फ एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि पत्रकारिता के प्रति जुनून रखने वाले हजारों युवाओं का सपना है। यह संस्थान सिर्फ शिक्षा नहीं देता, बल्कि अपने छात्रों में वह दृष्टि और क्षमता विकसित करता है, जिससे वे समाज को एक नई दिशा दिखा सकें। यदि आप जनसंचार के माध्यम से दुनिया में जो बदलाव हो रहे हैं, उसका हिस्सा बनना चाहते हैं तो आईआईएमसी आपके सपनों का वह पुल है, जो आपको सफलता की ऊंचाईयों तक ले जाएगा।
झारखंड राज्य गठन के 24 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इतने लंबे समय अंतराल के बावजूद राज्य के अस्पतालों में फायर सेफ्टी एक्ट का पालन नहीं किया जा रहा है। जो स्वास्थ्य सेवाओं की लचर व्यवस्था को उजागर करता है। मरीजों और स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा को नजरअंदाज करना न केवल प्रशासन की लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि राज्य के स्वास्थ्य ढांचे पर भी गंभीर सवाल खड़ा करता है।
सर्दी के दस्तक के साथ ही शहर के प्रमुख चौक-चौराहों और गलियों में गुड़ और तिलकुट की सुगंध लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने लगती है। मकर संक्रांति की तैयारी और तिलकुट का स्वाद इस मौसम को और भी खास बना देता है। हर जगह लकड़ी के मोटे कट्ठे पर तिलकुट कूटने की आवाज़ और उसकी बनावट की प्रक्रिया देखते ही बनती है। ये सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि परंपरा, मेहनत और स्वाद का मेल है। रांची के अपर बाजार में तिलकुट बनाने वाले कारीगरों का हुनर अद्वितीय है। गया जिले के सरघाटी निवासी दिलीप प्रसाद पिछले 25 वर्षों से तिलकुट बनाने का काम कर रहे हैं। उनके साथ काम करने वाले दो अन्य कारीगर, गुड्डू कुमार और संदीप भी गया के ही रहने वाले हैं। दिसंबर से फरवरी तक इनका कारोबार खूब चलता है। दिलीप बताते हैं कि हम हर दिन करीब 70 किलो तिलकुट बनाते हैं। बाजार में गुड़ और चीनी के तिलकुट की मांग है, लेकिन सबसे ज्यादा डिमांड गुड़ वाले तिलकुट की होती है। इस साल गुड़ और चीनी के तिलकुट का दाम 300-320 रुपये प्रति किलो है। तैयार तिलकुट शहर के आसपास के क्षेत्रों में भेजा जाता है।
भारत-पाक युद्ध 1971 में शहीद हुए अल्बर्ट एक्का की मूर्ति, जो आज देश की वीरता और बलिदान की प्रतीक बन चुकी है। उनकी मूर्ति आज अंधेरे में कहीं खो गई है। यह मूर्ति शहर के बीचोंबीच में वहां स्थापित है, जहाँ हर साल उनकी वीरता को याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। 3 दिसंबर को उनका बलिदान दिवस है, और प्रशासन ने इस अवसर पर अल्बर्ट एक्का चौक को फूलों से सजाया तो है, लेकिन यह सजावट उस समय फीकी पड़ गई, जब यह मूर्ति आज की रात अंधेरे में डूबी रही। हालांकि, प्रशासन ने मूर्ति को रोशन करने के लिए पांच हैलोजन लाइटें लगाई हैं, वहीं अंदर भी छोटे छह लाइट्स लगाए हैं, ताकि मूर्ति की सुनहरी झलक लोगों को देखने को मिले, लेकिन ये सभी लाइटें बंद पड़ी थीं।
रांची के ठंडे मौसम में एक बुजुर्ग की थकान भरी, लेकिन संकल्पित नजरें मुझे कुछ और ही कह रही थीं। यह व्यक्ति, जिनका नाम ऋषिकेश शर्मा है, पलामू जिले के डाल्टनगंज से हैं। इनकी उम्र करीब 72 साल है और ये पिछले पचास वर्षों से रांची में रह रहे हैं। जीने की ललक और अपने परिवार का भरण-पोषण करने की सच्ची भावना ने उन्हें वर्षों से ऐसे रास्ते पर लाकर छोड़ दिया है, जहां वह बांस की सीढ़ी बनाने का काम करते हैं और इससे इनके परिवार का भरण-पोषण होता है।
राजधानी रांची से 10 किलोमीटर दूर एक ऐसा गांव भी है, जहां के लोगों को पीने के पानी के लिए आधा से एक किलोमीटर दूर जाना होता है, तब जाकर पीने का पानी उपलब्ध होता है। हम बात कर रहे हैं जगन्नाथपुर के बड़कागढ़ गांव की। यहां के लोगों को पीने के पानी के लिए हर रोज संघर्ष करना पड़ता है। गांव के लोग बताते हैं कि गांव में तीन चापाकल और एक कुआं है, जिसमें से एक चापाकल वर्षों से खराब पड़ा हुआ है।
समेकित बाल विकास सेवा योजना के अंतर्गत 1975 में देशभर में आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थापना की गई थी। जिसका मुख्य उद्देश्य बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना था। यह योजना समाज के उन वर्गों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी, जो हाशिए पर जी रहे थे। जो जीने के लिए कुपोषण, शिक्षा की कमी और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में संघर्ष कर रहे थे। लेकिन, राजधानी में अब भी आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थिति इस तरह से होना सरकार की योजनाओं पर गंभीर सवाल खड़े करती है। हम बात कर रहे हैं, कोकर वार्ड नंबर दस के श्रीराम नगर आंगनबाड़ी केंद्र की। 10×12 का यह आंगनबाड़ी केंद्र, पिछले 15 साल से एक ही कमरे में चल रही हैं, जहां न तो पर्याप्त जगह है और न ही बुनियादी सुविधाएं।
शादी का मौसम आते ही शहरों में फूलों की मांग में भी तेजी आ जाती है। हर कोई अपने खास दिन को यादगार बनाने के लिए सजावट में फूलों का भरपूर इस्तेमाल करता है। बात सिर्फ दूल्हे राजा की गाड़ी सजाने या हल्दी सेरेमनी की रंगीनता को बढ़ाने और मंडप सजाने तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि अब शादी घर या मैरेज हाल के प्रत्येक कोने को महकाने का चलन बढ़ा है। पैसेज के गलियारे, स्वागत द्वार, और रिसेप्शन हाल भी अब देशी और विदेशी फूलों से सज रहे हैं। यह बदलाव न केवल पारंपरिक सजावट को नयापन दे रहा है, बल्कि दूल्हा-दुल्हन की शादी को एक अंतरराष्ट्रीय फ्लेवर भी प्रदान कर रहा है।
शांति और सुकून किसे पसंद नहीं है। दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति इसके पीछे भाग रहा है। शहर की तेज रफ्तार और कोलाहल भरी जिंदगी से यदि आप भी परेशान हैं और कुछ पल के लिए आप शहर में रहकर ही शांति और सुकून से बिताना चाहते हैं, तो हम आपको शहर के एक ऐसे पार्क के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां न सिर्फ आप सुकून के दो पल बिता सकते हैं, बल्कि प्रकृति के बीच में रहकर आपको तरोताजगी का एहसास भी होगा। मनोरंजन के तमाम साधन और कार्यक्रम के साथ हर वो सुविधाएं मिलेंगी जिसकी आप कल्पना करते हैं। हम बात कर रहे हैं 34 एकड़ में रांची के ह्रदय में फैले राजधानी के सबसे बड़े पार्क बिरसा मुंडा पार्क की। बिरसा पार्क जो सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और मनोरंजन के अद्भुत केंद्र के रूप में जाना जाता है। जहां आपको न सिर्फ शांति का अनुभव होता है, बल्कि यहां की हरियाली, वृक्ष और फूलों की सुंदरता, ताजगी से भरा वातावरण और शांतिपूर्ण माहौल आपको वास्तविक सुकून का एहसास कराता है।
एजुकेशन पर आधारित हिंदी वेब सीरीज ‘अंग्रेजी सपने' का ट्रेलर रविवार को रिलीज कर दिया गया। यह वेब सीरीज सामाजिक परिवेश और संघर्षों पर आधारित कहानी को बड़े ही दिलचस्प तरीके से पर्दे पर पेश करता है। कहानी दो मुख्य पात्रों के इर्द-गिर्द घूमती है, जो विपरीत पृष्ठभूमि से आते हैं। लेकिन, अपने सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष और प्रेरणा का रास्ता अपनाते हैं।
रांची के मोरहाबादी स्थित टैगोर हिल की जीर्णोद्धार के लिए राज्य सरकार ने मार्च 2023 में 69.3 लाख रुपए की मंजूरी दी थी। लेकिन, इस ऐतिहासिक धरोहर के रख-रखाव के लिए पर्यटन विभाग की ओर से कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया। आश्चर्य की बात यह है कि मार्च 2023 में टैगोर हिल के संरक्षण के लिए 69 लाख 30 हजार रुपये आवंटित भी कर दिए गए। लेकिन, 20 माह बाद भी टैगोर हिल अपनी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में ही पड़ा हुआ है।
एक जमाना था जब राजभवन स्थित डा. जाकिर हुसैन पार्क स्थानीय लोगों और बच्चों से गुलजार रहता था, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही ने इसे कहीं का न छोड़ा। रखरखाव के अभाव में यह पार्क आज बदहाली के दौर से गुजर रहा है। अब यहां वीरानी और सन्नाटा पसरा रहता है। यहां एक दशक पहले तक युवा और बुजुर्ग सुकून के दो पल बिताने आते थे। बच्चों से लेकर बुजुर्गों का जमघट लगा रहता था, लेकिन पार्क की बदहाली ने उसकी रौनक छीन ली है। पार्क में अब सन्नाटा पसरा रहता है। अब तो लोग यहां झांकने तक भी नहीं आते हैं।
मंगलवार 5 नवंबर से महापर्व छठ की शुरुआत हो जाएगा। शहर के फिरायलाल चौक स्थित अपर बाजार में प्रवेश करते ही शारदा सिन्हा की छठी गीत ‘पहिले पहिल हम कईनी, छठी मईया व्रत तोहार’ की लाइनें कानों में गूंजती हैं। बाजार में अंदर प्रवेश करते ही यूं मानो ऐसा लगता है जैसे खरीदारी करने के लिए आए हुए व्रती के साथ-साथ दुकानदार भी मन ही मन शारदा सिन्हा की गीतों को गुनगुना रहे हों। पर्व में इस्तेमाल होने वाले सामानों से बाजार पूरी तरह से सज चुका है। दीपावली के अगले दिन से ही व्रत करने वाले व्रतियों ने जरूरी सामानों की खरीदारी शुरू कर दी है।
राजधानी से 30 किमी दूर खिजरी प्रखंड में गेतलसूद पंचायत है। इस पंचायत में चार गांव हैं- गेतलसूद, बुकी, रेशम और बेनादाग। गेतलसूद गांव, जिसने राजधानी को आबाद बनाया है, शहर के करीब 30 लाख लोगों को पानी इसी गांव के गेतलसूद डैम से मिलता है। यह पंचायत आज भी उपेक्षित है। आज उस पंचायत के लोग बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं।
झारखंड के सबसे हाट सीटों में एक खिजरी विधानसभा सीट में इस बार भी लड़ाई काफी रोमांचक होने वाली है। दोनों ही मुख्य पार्टियों ने अपने पुराने ही चेहरे पर दांव खेला है। दिलचस्प बात यह है कि इस सीट पर 1995 के बाद कोई भी प्रत्याशी एक बार से अधिक चुनाव नहीं जीत सका है। कांग्रेस की तरफ से राम कुमार पाहन और बीजेपी की तरफ से राजेश कच्छप चुनावी रण में हैं।
राजधानी रांची में नियम-कानून को ताक पर रखकर 2000 से अधिक मटन व चिकन की दुकानें चल रही हैं। इन दुकानदारों पर न तो पुलिस प्रशासन डंडा चला पा रहा है और न ही खाद्य सुरक्षा अधिकारी ऐसे व्यापारियों पर कोई कार्रवाई करते नजर आ रहा है। शहर में जितनी भी दुकानें चौक-चौराहों और सड़कों के किनारे लगती हैं। खाद्य सुरक्षा अधिकारी का कहना है कि उन व्यापारियों के पास किसी भी प्रकार के कोई लाइसेंस नहीं हैं। लोग खुले आम सड़कों के किनारे मांस-मछली बेच रहे हैं। शहर के ज्यादातर क्षेत्रों में पशुओं को खुले आम काटकर लटका कर छोड़ देते हैं, जिस पर धूल और मक्खियाँ बैठती रहती हैं। इनके द्वारा एफएसएसएआइ की किसी भी गाइडलाइन का पालन नहीं किया जा रहा है। हाइकोर्ट के आदेश के बाद भी पुलिस प्रशासन चैन की बंसी बजाने में मशगूल है।
राजधानी रांची के एकमात्र सरकारी बस स्टैंड की हालत बद से बदतर हो गई है। बदहाली का आलम यह है कि यहां एक पल भी खड़ा रहना मुश्किल है। यह बस स्टैंड अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। झारखंड राज्य गठन होने के 24वें साल में भी इस बस स्टैंड की व्यवस्था में कोई भी सुधार नहीं हुआ।
रांची नगर निगम ने आमजन की शिकायतों से मुंह मोड़ लिया है। निगम में लगातार शिकायतों का अंबार लगता जा रहा है, लेकिन इनका निस्तारण नहीं हो पा रहा है। नगर निगम में पिछले छह महीने से 7000 से ज्यादा शिकायतें पेंडिंग पड़ी हैं। इनमें सर्वाधिक शिकायतें स्ट्रीट लाइट और कूडा-कचरा को लेकर है। बाकी अन्य शिकायतें जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, होल्डिंग टैक्स, सीवरेज, नाली व मुहल्ले के सड़कों की मरम्मती को लेकर है।
साल भर पहले बासुकीनाथ- दुमका रोड हाइवे एनएच 114 का निर्माण हुआ। हाइवे के निर्माण में सैंकड़ों लोगों की जमीनें चली गईं। उसी में से एक नाम है अवध बिहारी का। अवध बिहारी तैंतरीया, दुमका जिला के रहने वाले हैं। सरकारी सिस्टम की असंवेदनशीलता के कारण अवध बिहारी को अपनी जमीन का मुआवजा तो नहीं मिल सका। लेकिन, आफिस का चक्कर काटते-काटते और अपनी उपजाऊ जमीन सरकार को देकर तनाव लेकर जीते हुए वे कब हार्ट के मरीज बन गए, उन्हें भी पता नहीं चल सका। उन्हें सरकारी आफिस का चक्कर लगाने से छुट्टी मिल गई। लेकिन, मुआवजा के लिए उन्होंने सरकारी सिस्टम से लड़ाई जारी रखी और इसकी जिम्मेदारी उन्होंने अपनी बड़ी बेटी के कंधों पर दे दी।
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