भारत-पाक युद्ध 1971 में शहीद हुए अल्बर्ट एक्का की मूर्ति, जो आज देश की वीरता और बलिदान की प्रतीक बन चुकी है। उनकी मूर्ति आज अंधेरे में कहीं खो गई है। यह मूर्ति शहर के बीचोंबीच में वहां स्थापित है, जहाँ हर साल उनकी वीरता को याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। 3 दिसंबर को उनका बलिदान दिवस है, और प्रशासन ने इस अवसर पर अल्बर्ट एक्का चौक को फूलों से सजाया तो है, लेकिन यह सजावट उस समय फीकी पड़ गई, जब यह मूर्ति आज की रात अंधेरे में डूबी रही। हालांकि, प्रशासन ने मूर्ति को रोशन करने के लिए पांच हैलोजन लाइटें लगाई हैं, वहीं अंदर भी छोटे छह लाइट्स लगाए हैं, ताकि मूर्ति की सुनहरी झलक लोगों को देखने को मिले, लेकिन ये सभी लाइटें बंद पड़ी थीं।
यह दृश्य प्रशासन की अनदेखी और शहीदों के सम्मान में खामोशी को उजागर करता है। एक ऐसे शहीद के लिए, जिसने अपनी जान देश के लिए दी, क्या यह उचित है कि उसकी मूर्ति अंधेरे में पड़ी रहे? किसी भी राष्ट्र के लिए अपने वीर जवानों के बलिदान को याद करना और सम्मान देना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। लेकिन जब वे मूर्तियों के रूप में हमें देखने को मिलते हैं, तो क्या यह जरूरी नहीं कि उनकी छवि भी उतनी ही रोशन हो, जितना उनका बलिदान हमारे दिलों में चमकता है? अल्बर्ट एक्का की मूर्ति का अंधेरे में रहना, यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपने राष्ट्र नायकों को हमेशा सम्मान के साथ देख पाएंगे या फिर उनकी वीरता को समय के अंधेरे में खो जाने दिया जाएगा।
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