रांची के ठंडे मौसम में एक बुजुर्ग की थकान भरी, लेकिन संकल्पित नजरें मुझे कुछ और ही कह रही थीं। यह व्यक्ति, जिनका नाम ऋषिकेश शर्मा है, पलामू जिले के डाल्टनगंज से हैं। इनकी उम्र करीब 72 साल है और ये पिछले पचास वर्षों से रांची में रह रहे हैं। जीने की ललक और अपने परिवार का भरण-पोषण करने की सच्ची भावना ने उन्हें वर्षों से ऐसे रास्ते पर लाकर छोड़ दिया है, जहां वह बांस की सीढ़ी बनाने का काम करते हैं और इससे इनके परिवार का भरण-पोषण होता है।
रात के 11:10 बजे हैं, ठंडी हवा के झोंके की गूंज से सन्नाटा और भी गहरा हो रहा है। सड़क पर कुछ गाड़ियाँ तेजी से आ-जा रही हैं। लालपुर डिस्टलरी पुल के समीप, सड़क किनारे एक बुजुर्ग को स्ट्रीट लाइट की रोशनी में काम करते देखकर कुछ पल के लिए समय जैसे थम सा गया हो। वो बुजुर्ग इस ठंडी रात में बांस की सीढ़ी बना रहे थे, और उनके हाथ की बसीला बांस को ठोंके जा रहे थे। मैंने उस बुजुर्ग से पूछा, इतनी रात में क्यों काम कर रहे हैं, बाहर में ठंड लग रही है। सुबह फिर बनाइएगा? वे मुस्कराए और बोले, बेटा, कल फिर बनाना है, लेकिन रात का वक्त मेरे लिए मुफीद है। दिन में बाहर के लोग यही काम करते हैं, और मैं किराये की झोपड़ी में रहता हूं, सोता हूं। दोपहर तीन बजे से लेकर रात के दो-तीन बजे तक मुझे ही यह काम करना पड़ता है। मेरे बेटे और बेटी का भविष्य इस मेहनत में छिपा है। मेरा बेटा, इसी शहर में रहकर पढ़ाई कर रहा है, तो उसके लिए रात में ये करना होता है।
ऋषिकेश शर्मा के चेहरे पर जीवन की लहरें साफ दिख रही थीं। मेहनत और संघर्ष की एक गहरी पहचान उनके भीतर थी। जब मैंने उनसे पूछा, ठंड नहीं लगती? तो उनका जवाब और भी हृदय को को छूने वाला था। उन्होंने कहा- ठंड में हाथ ठिठुर जाते हैं, लेकिन झोपड़ी में बोरसी में आग जलाकर हाथ सेंकता हूं, फिर काम पर लग जाता हूं। यही मेरी दिनचर्या है।
हर एक बांस की सीढ़ी, हर एक ठोकर और हर एक रात्रि की जागरण में उनके सपने छुपे हुए हैं। एक ऐसा जीवन जहां रातें दिन में बदल जाती हैं, जहां शरीर की थकान भी उम्मीदों के आगे बेमानी हो जाती है। उनकी आँखों में जो उम्मीद, सपने और संघर्ष था, वह हर उस व्यक्ति को प्रेरित करता है, जो अपने बेटे और बेटियों की सपनों को पूरा करने के लिए दिन-रात एक करता है।
इनका जीवन एक संघर्ष की गाथा है, जो किसी भी शहर की सड़कों पर नजर नहीं आती। लेकिन जब आप ध्यान से देखेंगे, तो पाएंगे कि इस संघर्ष में उम्मीद, मेहनत और अपने परिवार के लिए प्यार का एक अडिग इरादा है। हर बांस की सीढ़ी की तरह, वे भी अपने जीवन के प्रत्येक कदम को एक सीढ़ी मानते हैं, जो उन्हें अपने सपनों के करीब ले जाती है। यह कहानी केवल एक बांस की सीढ़ी बनाने वाले बुजुर्ग की नहीं है, बल्कि उन लाखों संघर्षशील लोगों की है, जो बिना किसी शोर-सपाटे के अपने कर्म में इस कड़ाके की ठंड में भी निरंतर लगे हुए हैं।
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