अस्पतालों में फायर सेफ्टी मानकों की अनदेखी, लाखों ज़िदगियां खतरे में

झारखंड राज्य गठन के 24 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इतने लंबे समय अंतराल के बावजूद राज्य के अस्पतालों में फायर सेफ्टी एक्ट का पालन नहीं किया जा रहा है। जो स्वास्थ्य सेवाओं की लचर व्यवस्था को उजागर करता है। मरीजों और स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा को नजरअंदाज करना न केवल प्रशासन की लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि राज्य के स्वास्थ्य ढांचे पर भी गंभीर सवाल खड़ा करता है।

हाल के वर्षों में विभिन्न अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है। ताज़ा मामला झांसी हास्पिटल का है, जिसमें आग लगने से 10 नवजात शिशुओं की मौत हुई और कई गंभीर रूप से घायल हुए थे। इससे पहले 26 मई को पूर्वी दिल्ली के बेबी केयर न्यू बोर्न अस्पताल में आग लगने से 7 बच्चों की मौत हुई और 5 बच्चे घायल हुए थे। बावजूद, इसके प्रशासन अब भी मूकदर्शक बना हुआ है।

स्वास्थ्य विभाग और राज्य सरकार की उदासीनता के कारण लाखों लोगों की जान जोखिम में है। आंकड़े और भी बड़े और चौंकाने वाले हैं। हालांकि झारखंड में अब तक ऐसी कोई घटना नहीं हुई है, लेकिन सुरक्षा के मानकों पर किसी भी तरह की लापरवाही बड़े हादसे का कारण बन सकती है। राज्य के अस्पतालों में मरीज हो, डाक्टर हो, नर्स हो, कर्मचारी हो या अन्य कोई भी व्यक्ति हो। सबकी सुरक्षा के साथ खिलवाड़ हो रहा है। राज्य के बड़े अस्पतालों में भी फायर सेफ्टी से अग्निशमन विभाग अंजान हैं।

क्या हैं मानक : फायर सेफ्टी मानकों के तहत भवन 9 मीटर ऊंचाई और 500 स्क्वायर फीट से अधिक क्षेत्रफल वाले अस्पतालों के लिए एनओसी और सर्टिफिकेट होना चाहिए। अधिकारी बताते हैं कि आजकल गली-कूची में खुले निजी अस्पताल सुरक्षा मानकों का ख्याल नहीं रखते हैं। हादसा होता है, तो मौके पर फायर ब्रिगेड को पहुंचने के लिए रास्ता तक नहीं मिल पाता है। ऐसे में प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग को भी थोड़ा सजग होना जरूरी है। हादसा होने पर ही प्रशासन अगला कदम उठाता है।

क्या कहते हैं अधिकारी : राज्य अग्निशमन अधिकारी जितेंद्र तिवारी का कहना है कि राज्य में जितने अस्पताल चल रहे हैं, सारे अस्पताल रजिस्टर्ड नहीं हैं, इसलिए यह कहना मुश्किल है कि कितने अस्पतालों ने फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट लिया है। जो अस्पताल रजिस्टर्ड भी हैं, वैसे अस्पतालों के पास भी एनओसी और सर्टिफिकेट नही हैं। ज्यादातर अस्पताल तो एनओसी और सर्टिफिकेट लेना जरूरी ही नहीं समझते, और जो अस्पताल सर्टिफिकेट लेते भी हैं, वे समय-समय पर आडिट नहीं कराते हैं। हालांकि, यह न सिर्फ मरीजों के साथ बल्कि नर्स, डाक्टर और अन्य सभी लोगों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है।

-जितेंद्र तिवारी, राज्य अग्निशमन अधिकारी

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गांव-गांव और शहर-दर-शहर की गलियों में भटकता, जज़्बातों की कहानियाँ बुनता हूँ। हर मोड़ पर नया अनुभव, दिल के कोने में छुपी भावनाओं को जीता हूँ।