फंड का रोना या प्रबंधन की लापरवाही, खामियाजा भुगत रहे छात्र

एक तरफ जहां राज्य सरकार जिले में सीएम स्कूल आफ एक्सीलेंस जैसी योजनाओं से शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने पर जोर दे रही है। वहीं, दूसरी तरफ राजधानी में ऐसे कालेज भी हैं जो बुनियादी सुविधाओं के लिए फंड का रोना रो रहे हैं। इसकी वजह से छात्रों को क्लासरूम में अपने ही पैसे से पंखे, बल्ब और पर्दे आदि लगाने पड़ रहे हैं। हम बात कर रहे राम लखन सिंह यादव कालेज, कोकर, रांची की। कालेज प्रशासन की उपेक्षा और फंड की कमी के चलते छात्रों को यह कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। यह स्थिति शिक्षा के अधिकार पर सवाल खड़ा करती है, जब सरकारी योजनाएं प्रशासनिक अक्षमता के कारण धरातल पर नहीं उतर पा रही हैं।

बीसीए में 80 छात्रों पर मात्र 12 कम्प्यूटर : बीसीए विभाग के छात्रों ने बताया कि थ्योरी की पढ़ाई के बाद प्रैक्टिकल के लिए इंतजार करना पड़ता है। कालेज के बीसीए विभाग में 80 छात्रों पर मात्र 12 कंप्यूटर सिस्टम उपलब्ध हैं। ये भी ठीक से काम नहीं करते हैं। छात्रों का कहना है कि इस स्थिति में प्रैक्टिकल कैसे संभव है? वहीं, कालेज के अंदर साइंस लैब की स्थिति भी दयनीय है। यहां केमिकल्स के नाम पर सिर्फ खाली जार पड़े हुए हैं। इन जारों में किसी भी प्रकार का जरूरी रसायन नहीं है। लाइब्रेरी में भी किताबें बहुत कम हैं, नई शिक्षा नीति के हिसाब से कोई नई किताबें भी नहीं आई हैं। जिसकी वजह से छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। बार-बार शिकायत करने के बावजूद भी कालेज प्रबंधन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।

आप्टिकस लैब बना कबाड़खाना

छात्रों ने अपने पैसे से लगाए पंखे और बल्ब : कालेज में सभी विभाग का क्लासरूम कंक्रीट का बना हुआ है। उसकी छत की ढलाई नहीं की गई है। इसकी वजह से बीसीए के छात्रों को क्लासरूम में बैठकर पढ़ाई करना मुश्किल हो रहा था। छात्रों ने अपनी समस्याएं विभाग के प्रोफेसर को बताई और पंखे लगवाने की बात कही। लेकिन संबंधित विभाग के प्रोफेसर ने इस पर कोई सुनवाई नहीं की और उन्होंने कहा कि ये सब तो छोटी-छोटी समस्याएं हैं, तुमलोग मिलकर ये सब तो कर ही सकते हो। अंत में सभी छात्रों ने इस समस्या का समाधान अपने स्तर पर मिलकर किया, और क्लासरूम में दो पंखे, बल्ब और पर्दा आदि लगवाया। लेकिन, सवाल यह उठता है कि जब छात्रों को पढ़ाई में कठिनाइयाँ आ रही हैं, तो क्या प्रशासन को इस पर ध्यान नहीं देना चाहिए था?

राम लखन सिंह यादव कालेज का कंक्रीट का भवन

सुरक्षा की खामियां : कालेज के सुरक्षा इंतजाम भी पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहे हैं। सुरक्षा गार्ड अपनी जिम्मेदारियों से बेखबर रहते हैं। कालेज के मेन गेट पर निगरानी के लिए कोई भी कैमरा नहीं लगाया गया है। कालेज परिसर में बाहरी व्यक्तियों का आना-जाना हमेशा बना रहता है, लेकिन गार्ड को इसकी कोई खबर तक नहीं। किसी भी कालेज परिसर की सुरक्षा प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए, लेकिन यहां यह बिल्कुल ही नजरअंदाज की जा रही है।

साफ-सफाई शून्य : कालेज में सफाई व्यवस्था भी कहीं से संतोषजनक नहीं है। छात्र बताते हैं कि पीने के पानी की टंकी की सफाई 2 साल से नहीं हुई है। जब मोटर चालू होता है तब नल से पानी में काई भी निकलता है। इसके अलावा, पुरुषों के टायलेट का दरवाजा भी टूटा हुआ है, अगर किसी को शौचालय में प्रवेश करना हो तो मेन गेट को बंद करना पड़ता है। टायलेट की साफ-सफाई भी नियमित रूप से नहीं होती। कालेज परिसर में जहां-तहां झाड़ियां उग आई हैं और वालीवाल कोर्ट की भी स्थिति ठीक नहीं है। कक्षाओं के बाहर कचरे का अंबार जमा हुआ है।

कालेज के शौचालय की बदहाली

फंड की कमी, या प्रबंधन की लापरवाही : कालेज के प्रोफेसर इंचार्ज की चैंबर की स्थिति भी दयनीय है। प्रोफेसर इंचार्ज बताते हैं कि कालेज में फंड की कमी के कारण बहुत सारे जरूरी काम रूके हुए हैं। मेरे ही चैम्बर में बारिश के मौसम में पानी टपकता है। लेकिन फंड की कमी की वजह से सबकुछ चल रहा है। कालेज में आधे से अधिक प्रोफेसर संविदा पर हैं, अंग्रेजी विभाग में प्रोफेसर नहीं हैं। इस स्थिति को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि कालेज प्रशासन फंड की कमी का बहाना बनाकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहा है। जब कालेज की बुनियादी सुविधाओं पर ही ध्यान नहीं दिया जा रहा, तो शिक्षा के स्तर को सुधारने की उम्मीद रखना बेमानी लगता है।

“यह मामला मेरे संज्ञान में नहीं है, अगर ऐसी कोई बात है तो संबंधित विभाग के प्रोफेसर और छात्रों से इसकी पूछताछ की जाएगी”।

- डा. विष्णु चरण महतो, प्रोफेसर इंचार्ज, राम लखन सिंह कालेज,कोकर

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गांव-गांव और शहर-दर-शहर की गलियों में भटकता, जज़्बातों की कहानियाँ बुनता हूँ। हर मोड़ पर नया अनुभव, दिल के कोने में छुपी भावनाओं को जीता हूँ।