बेहतर चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के लिए रिम्स को हर साल 300 करोड़ से अधिक का फंड मिलता है, फंड का पैसा पूरा उपयोग नहीं हो पाने के कारण हर साल कुछ फंड वापस चला जाता है लेकिन…
रिम्स में अव्यवस्था के कारण दूर-दूराज से बेहतर इलाज की उम्मीद लेकर आये मरीजों व उनके परिजनों की समस्या हल नहीं हो पाती है।
दुमका के रहने वाले पवन गिरी बताते हैं कि उनके ससुर को अस्पताल में लाए हुए तीन दिन हो गया है। लेकिन अब तक इस अस्पताल से कोई भी इलाज नहीं मिल सका है। डाक्टर ने बायोप्सी टेस्ट लिखा, जिसका अस्पताल में जांच नहीं होने के कारण बाहर से कराना पड़ा। बाहर से मात्र एक जांच कराने का खर्च 3200 रूपए पड़ा। मरीज की स्थिति काफी गंभीर है। 3 दिनों से खाना-पीना बंद है। दर्द की वजह से परेशान हैं लेकिन अस्पताल में भर्ती नहीं कर रहा है और न ही ऐसे गंभीर मरीज की देख-रेख के लिए कोई बेड उपलब्ध कराया है। डाक्टर के अनिश्चितकालीन हड़ताल और कोई व्यवस्था ठीक नहीं होने के कारण मरीज दर्द से परेशान होकर जमीन पर ही सो गया। कहीं कोई इलाज नहीं हो पा रहा है, इमरजेंसी में कहा गया कि इसका इलाज यहां नहीं होगा।
चंदर रवानी की पत्नी बताती हैं कि इनके पति मुंह के कैंसर से पीड़ित हैं। वे कल शाम में ही अपने पति को यहां लेकर आईं। लेकिन कल से कोई इलाज नहीं मिला है। चंदर की पत्नी बताती हैं कि उनके पति मुंह के दर्द से बैचेन हैं। दर्द की वजह से कुछ भी खा-पी नहीं पाते हैं। लेकिन डाक्टर नहीं देखे हैं और न ही कुछ खाने-पीने को दिया गया। हड़ताल की वजह से आज भी इलाज नहीं हो पाएगा। कोई इस दर्द को बांटने वाला नहीं है।
अर्पित के पिता बताते हैं कि ये पेट के दर्द से कराह रहा था, पेशाब नहीं हो पा रहा था। कल ही अस्पताल लाया हूं डाक्टर ने भर्ती नहीं किया। बाहर निकाल दिया, इसलिए दर्द से परेशान होकर फर्श पर ही लेट गया। डाक्टर ने कुछ दवाई दिया, लेकिन दवाई से पेट के दर्द में कोई आराम नहीं मिला है। हम अपनी पीड़ा किसको सुनाएं, कोई हमारी सुनता ही नहीं है।
अनिश्चितकालीन हड़ताल पर क्या कहा मरीजों ने ?
आंकोलॉजी विभाग से इलाज नहीं मिलने के कारण इलाज की आश लगाकर ओपीडी तक पहुंचे और यहां भी इलाज नहीं मिलने के कारण मरीजों के परिजन ने कहा कि हजारों मरीज यहां जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं लेकिन डाक्टरों को मरीजों की कोई चिंता ही नहीं है। इमरजेंसी में मरीजों को देख नहीं रहे हैं, वहां डाक्टर कह रहे हैं कि ऐसे मरीजों को उसी से संबंधित विभाग में इलाज मिलेगा।
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